देश में हर साल 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रुप में मनाया जाता है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्म दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। मौलाना अबुल कलाम का जन्म 11 नवम्बर 1888 में हुआ था।
मौलाना आजाद की स्मृत्ति में प्रत्येक वर्ष 11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने एवं प्रत्येक व्यक्ति को साक्षर बनाने हेतु इस दिन अभियान एवं विभिन्न कार्यक्रम चलाये जाते हैं जिससे लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक और आकर्षित कर सकें।
मौलाना अबुल कलाम आजाद महात्मा गांधी से प्रभावित होकर भारत के स्वतंत्रा संग्राम में बढ़चर कर हिस्सा लिया और भारत के बंटवारे का घोर विरोध किया। वह हिन्दू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े पैरोकार थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 1912 में उर्दू में सप्ताकि पत्रिका अल-हिलाल निकालनी शुरू की जिससे युवाओं को क्रांति के लिए जोड़ा जा सके।
मौलाना आजाद ने उर्दू, फारसी, हिन्दी, अरबी और अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की। सोलह साल में ही उन्हें वो सभी शिक्षा मिल गई थीं जो आमतौर पर 25 साल में मिला करती थी। मौलाना आजाद स्वंय उर्दू के बड़े एवं काबिल साहित्यकार थे, परन्तु शिक्षा मंत्री बनने के बाद उर्दू की जगह अंग्रेजी को अत्यधिक तरजीह दी।
मौलाना आजाद को एक शानदार वक्ता के रूप में जाना जाता था। उन्होंने 14 साल की आयु तक सभी बच्चों के लिए निशुल्क सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा के अलावा व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा की वकालत की। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया।
मौलाना आजाद की अगुवाई में वर्ष 1950 में संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी का गठन हुआ था। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान देश में अत्यधिक स्कूलों, कालेजों एवं विश्वविद्यालयों की स्थापना करवाई जिससे शिक्षा के स्तर को बढ़ाया जाये, और देश में शिक्षा के प्रतिशत में वृद्धि की जाये।
भारत में शिक्षा हेतु कई अभियान चलाये जा रहे हैं जिसमें सर्व शिक्षा अभियान शामिल है। सरकार अब प्राथमिक या माध्यमिक स्कलों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान कर रही है। और हमारे देश का शिक्षा का स्तर निरंतर बढ़ रहा है। एक स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के तौर पर उनके योगदान के लिए 1992 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
1949 में केंद्रीय असेंबली में उन्होंने आधुनिक विज्ञान के महत्व पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक समाज की आधी से ज्यादा आबादी यानी महिलाओं तक नहीं पहुंचता। साथ ही उन्होंने शैक्षणिक लाभों के लिए अंग्रेजी की भी वकालत की हालांकि उनका मानना था कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में दी जानी चाहिए।[the_ad_placement id=”after-content”]
मौलाना अबुल कलाम आजाद से संबंधित महत्वपूर्ण रोचक तथ्य:
- मौलाना अबुल कलाम आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री 15 अगस्त 1947 से 2 फरवरी 1958 के मध्य बनें।
- इनका जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब (तत्कालीन ओतोमन साम्राज्य के हेजाज विलाये के मक्का) में हुआ था।
- इनकी मृत्यु 22 फरवरी 1958 को दिल्ली में हुई थी।
- वे एक लेखक, कवि, पत्रकार तथा स्वतंत्रता सेनानी थे।
- वे 1940 से 1945 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना उनके उल्लेखनीय कार्यों में से एक है।
- मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अहयोग आंदोलन व खिलाफत आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी।
भारत की राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाएं:
“शान्ति निकेतन” अर्थात् `विश्व भारती’ विश्वविद्यालय भारत की सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय शिक्षा संस्था है जिसकी स्थापना डा। रवीन्द्राथ टैगोर ने 1901 ई. में की थी। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध देश में जिस पुनर्जागरण तथा क्रांति के आन्दोलनों का सूत्रपात हुआ उनके कर्णधार राजा राममोहनराय, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, अरविन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि देशभक्त थे। इन महापुरुषों ने जहाँ विविध क्षेत्रों में अपने मौलिक विचार प्रस्तुत किये, वहां शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण प्रयास किये। इन्होंने भारत में अँग्रेजी शिक्षा के विनाशकारी प्रभाव को समझ कर देश की सभ्यता एवं संस्कृति के अनुकूल शिक्षा के भारतीयकरण का प्रयास किया तथा अनेक राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं की स्थापना कर लोगों में देशभक्ति की चेतना जाग्रत की।
हरिद्वार की गुरुकुल कांगड़ी, अहमदाबाद की गुजरात विद्यापीठ, बनारस की काशी विद्यापीठ, बोलपुर (प. बंगाल) की शांति-निकेतन या विश्व भारती आदि इसी प्रकार के राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र थे। इन महापुरुषों एवं उनके द्वारा संस्थापित इन शिक्षा-संस्थाओं का भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में महत त्वपूर्ण योगदान रहा था।
सर्वशिक्षा अभियान:
केंद्र सरकार ने 6 से 14 वर्ष की उम्र वाले देश के सभी विद्यार्थियों के लिए सर्वशिक्षा अभियान के नारे के साथ इसकी शुरुआत वर्ष 2002 से की थी। इसके तहत शिक्षकों के लिए लगातार कई प्रशिक्षण सत्र रखे गए। देश भर के सभी राज्यों के सभी प्राथमिक-माध्यमिक स्कूलों के बाहर अनिवार्य रूप से सब “पढ़ें-आगे बढ़ें” का बोर्ड लगाया गया, जो समस्त जनता को यह संदेश देने के लिए लगाया गया था कि स्कूलों के दरवाज़े समाज के सभी वर्गों के लिए खुले हैं। इसके तहत सभी धर्मों-जातियों-वर्गों के स्वस्थ व अपंग बच्चों (6 से 14 वर्ष) को शिक्षित करने का प्रावधान किया गया।[the_ad id=”274″]