26 नवंबर, 2008 की शाम 8 बजे पूरा अरब सागर चाँद की रोशनी में नहाया हुआ था. समुद्र की लहरों के थपेड़ों के बीच एक डिंगी ‘क्वींस नेकलेस’ की तरफ़ बढ़ रही थी. उस पर सवार 10 हथियारबंद लोग गहन सोच में लीन थे.
उनके बैग में 10 एके-47, 10 पिस्टल, 80 ग्रेनेड, 2000 गोलियाँ, 24 मैगेज़ीन, 10 मोबाइल फ़ोन, विस्फोटक और टाइमर्स और खाने के लिए बादाम और किशमिश थे. ऐसा लगता नहीं था कि ये सब दुनिया के चौथे बड़े शहर को घुटनों पर लाने के लिए काफ़ी था.
उन्हें अपने हैंडलर के शब्द याद आ रहे थे, ‘तुम्हारा सबसे बड़ा हथियार है, उन्हें अचरज में डालना.’ उन्होंने रात में लैंड करने का कई दिनों तक अभ्यास किया था.
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उन्हें ये भी सिखाया गया था कि किस तरह टैक्सियों में टाइम बम प्लांट किए जाएं, ताकि वो पूरे शहर में थोड़े थोड़े अंतराल पर फटें और ये आभास मिले जैसे कि मुंबई पर पूरी सेना ने हमला कर दिया है.
ठीक आठ बज कर 20 मिनट पर उन्हें तट दिखाई दिया. जब अजमल क़साब ने हथियारों से भरा रकसैक अपने कंधों पर डाला तो उसे अपने हैंडलर के शब्द फिर से याद आए, ‘तुम्हारा चेहरे पर चांद की तरह का नूर दिखाई देगा. तुम्हारे शरीर से गुलाब की महक आएगी और तुम सीधे जन्नत जाओगे.’
26 नवंबर, रात 9 बज कर 43 मिनट, लियोपॉल्ड कैफ़े
मुंबई के कोलाबा कॉज़वे की शक्ल बहुत हद तक लंदन की ऑक्सफ़ोर्ड स्ट्रीट जैसी लगती है. पतली सड़क के दोनों तरफ़ दुकानें और रेस्तराँओं का लंबा सिलसिला.
करीब 9 बजे चार चरमपंथियों ने मच्छीमार नगर, बधवार पार्क से एक टैक्सी ली. उन्होंने टैक्सी ड्राइवर से ताज होटल चलने के लिए कहा. उनमें से एक ने चुपके से टैक्सी की पिछली सीट पर एक टाइम बम लगा दिया.
रीगल सिनेमा के पास टैक्सी एक ट्रैफ़िक जाम में फंस गई. लेकिन ड्राइवर ने उन्हें किसी तरह लियोपॉल्ड कैफ़े के सामने पहुंचा दिया. वहाँ दो लोग शुएब और नज़ीर अपने बैग और हथियारों के साथ उतर गए और बाकी दो लोग ताज होटल की तरफ़ बढ़ गए.
ड्राइवर किशोरबंद फूलचंद उन्हें वहाँ उतार कर आगे बढ़ गए. जब वो मज़गाँव के इलाके में पहुंचे तो उनकी टैक्सी में ज़ोरदार धमाका हुआ जिसमें वो और दो महिलाएं ज़रीना शेख़ और रीमा शेख़ मारे गए.
शुएब और नज़ीर कुछ मिनटों तक लियोपॉल्ड के सामने खड़े रहे. फिर एक ने दूसरे से कहा, ‘ओ भाई, बिसमिल्ला करें!’ वो लियोपॉल्ड के अंदर तक नहीं घुसे.
उन्होंने सड़क से ही अपनी एके -47 से फ़ायर करना शुरू कर दिया. वहाँ मौजूद लोगों ने घबरा कर पीछे के बाहरी गेट की तरफ़ भागना शुरू कर दिया. शुएब और नज़ीर फ़ायर करते हुए एक दरवाज़े से घुसे और दूसरे दरवाज़े से निकल गए.
पूरे आप्रेशन में एक मिनट से भी ज़्यादा का समय नहीं लगा. वहाँ कुल 9 लोग मारे गए. जब वो रेस्तराँ से निकल कर सड़क पर दोबारा आए, तब भी उन्होंने फ़ायरिंग करना जारी रखी.
वहाँ से महज़ 200 मीटर दूर कोलाबा पुलिस स्टेशन के ड्यूटी इंस्पेक्टर को एके-47 की फ़ायरिंग की आवाज़ सुनाई दी. वो तुरंत लियोपॉल्ड की तरफ़ भागा. शुरू में उसे लगा जैसे वहाँ कोई बम फटा हो. लोगों के शव इधर उधर बिखरे हुए थे. उसने अपने साथी का वाकी-टाकी ले कर साउथ कंट्रोल को पहला संदेश फ़्लैश किया, ‘21.48, कोलाबा 1 को लियोपॉल्ड होटल भेजो.’
26 नवंबर, रात 9 बज कर 45 मिनट, छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस
डिंगी पर बैठने से पहले ही जब वो कुबेर नौका पर ही थे तभी इस्माइल ख़ाँ ने दस पीले और लाल रंग के कलावे निकाले और हर एक को दे कर कहा कि वो इसे अपने दाहिने हाथ में बाँध लें.
जब इस्माइल ख़ाँ और क़साब बधवार पार्क पर डिंगी से उतरे तो उन्होंने कुछ देर इंतज़ार किया, क्योंकि उन्हें डर था कि वो ट्रैफ़िक जाम में फंस जाएंगे. फिर उन्होंने एक कैब रोकी जिसका नंबर था एमएच-01-जी779.
इस्माइल ख़ाँ आगे का दरवाज़ा खोल कर ड्राइवर के बग़ल में बैठ गया. उसने ड्राइवर से वीटी स्टेशन चलने के लिए कहा और उससे बातें करने लगा. उसका काम था ड्राइवर को बातों में उलझाना, ताकि पिछली सीट पर बैठे क़साब को ड्राइवर की सीट के नीचे टाइम बम प्लांट करने का मौका मिल जाए.
सीएसटी पर उतरकर क़साब अपने हथियार निकालने के लिए बगल के एक शौचालय में घुस गया. इन दोनों ने बड़े से हाल में जो दूसरे दर्जे के मुसाफ़िरों का वेटिंग रूम भी था और जहाँ टिकट खरीदने के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी, अँधाधुंध फ़ायरिंग शुरू कर दी.
क़साब फ़ायरिंग कर रहा था, जबकि उसके साथी इस्माइल ने अपने आप को ऐसी जगह छुपा रखा था, जहाँ से उसे कोई नहीं देख सकता था. उसका काम था निहत्थे लोगों पर ग्रेनेड फेंक कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मारना.
फ़ायरिंग शुरू होते ही लोग खाली डिब्बों की तरह ज़मीन पर गिरना शुरू हो गए. गोलियों की आवाज़ सुनते ही रेलवे अनाउंसर विष्णु ज़ेंडे ने लाउड स्पीकर पर अनाउंस करना शुरू कर दिया कि यात्री जितनी जल्दी हो, स्टेशन से बाहर निकलें.
इस चेतावनी से बहुत से लोगों की जान बची. फिर भी इस फ़ायरिंग में कुल 58 लोग मारे गए.
26 नवंबर, रात 9 बज कर 48 मिनट, ताज पैलेस होटल
शुएब और नज़ीर को लियोपॉल्ड कैफ़े पर उतारने के बाद अब्दुल रहमान बड़ा और अबू अली ने ताज पैलेस होटल के सामने अपनी टैक्सी रुकवाई. उतरते ही उन्होंने होटल के पीछे गोकुल रेस्तराँ के खुले अहाते में एक टाइम बम प्लांट किया.
पुलिस चौकी के पास जहाँ टाइलों का ढ़ेर पड़ा हुआ था, उन्होंने वहाँ पर भी एक बम रखा. होटल के अंदर घुसने से पहले उन्होंने सबसे पहले एक खोजी कुत्ते को गोली से उड़ा दिया.
वो मुख्य दरवाज़े से होटल के अंदर घुसे. अंदर घुसते ही होटल की शानशौकत देख कर कुछ सैकेंडों के लिए भौंचक्के से रह गए. फिर लाल टीशर्ट और बेसबॉल पहने हुआ शख़्स अचानक बाईं तरफ़ ‘हार्बर बार’ की तरफ़ मुड़ा.
पीली टी शर्ट पहने हुए शख़्स ने ‘शामियाना’ का रुख़ किया. उन्हें पहले से ही पता था कि उन्हें किधर जाना है. तभी दोनों ने एक ही समय पर अपने बैग ज़मीन पर रखे और उनमें से एके-47 निकाल ली.
26 नवंबर, रात 11 बज कर 50 मिनट, रंगभवन लेन
ज्वाइंट कमिशनर हेमंत करकरे, अतिरिक्त कमिशनर (ईस्ट) अशोक कामटे और इंस्पेक्टर सालस्कर कूद कर एक जीप में बैठे और रंगभवन लेन की तरफ़ बढ़े, हाँलाकि तब तक क़साब और इस्माइल कामा अस्पताल के सामने से निकल चुके थे.
इंस्पेक्टर सालस्कर क्वालिस गाड़ी चला रहे थे. कामटे उनके बग़ल में और करकरे बीच की सीट पर बैठे हुए थे. पीछे की सीटों पर ड्राइवर, क्राइम ब्रांच के एक और अधिकारी अरुण जाधव और तीन पुलिस कांस्टेबल बैठे हुए थे.
जाधव ने पीछे की सीट से देखा कि अचानक एक लंबा और एक नाटा शख़्स सामने आए और उन दोनों ने करकरे की गाड़ी पर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसानी शुरू कर दीं. ये पूरी तरह से कंट्रोल्ड बर्स्ट था, जैसे उन्होंने इस तरह के हमले की ट्रेनिंग ले रखी हो.
उन्होंने एक गोली भी ज़ाया नहीं की. उन्होंने उनकी गाड़ी का दरवाज़ा खोला. आगे की सीट पर बैठे हुए लोगों को ज़मीन पर फेंका. इस्माइल ने स्टेयरिंग संभाला और क़साब आगे की सीट पर उसके बगल में ही बैठ गया.
अभी वो थोड़ी ही दूर चले थे कि गाड़ी लहराने लगी और उसका पीछे का टायर पंक्चर हो गया. इस्माइल और क़साब ने बिना परेशान हुए एक गुज़रती हुई स्कोडा कार को रोका, ड्राइवर को ज़बरदस्ती नीचे उतारा और उस पर सवार हो कर आगे बढ़ गए.
27 नवंबर, रात 12 बजकर 40 मिनट, मैरीन ड्राइव
पुलिस के वायरलेस पर एक संदेश गूंजा, ‘स्कोडा कार स्कोडा 02 जेपी 1276, सिल्वर कलर, हाइजैक्ड बाई टेररिस्ट.’
आडियल कैफ़े के सामने पुलिस ने एक सिल्वर कलर की स्कोडा को आगे बढ़ते देखा. उन्होंने कार को रुकने का इशारा किया. कार बैरियर से थोड़ा पहले रुक गई, लेकिन ड्राइवर ने विंडस्क्रीन पर पानी डाल कर वाइपर चला दिया, ताकि बाहर से कोई देख न पाए कि अंदर कौन बैठा है.
दो पुलिस अफ़सर कार की बाईं तरफ़ गए. तभी किसी ने कार की पिछली सीट की खिड़की पर गोली चला दी. इस्माइल ने क़साब से कहा कि वो अपने हाथ ऊपर कर ले. तभी इस्माइल ने उसकी ओर आते पुलिसवालों पर गोली चला दी. पुलिस ने गोली का जवाब गोली से दिया.
तभी क़साब ने देखा कि इस्माइल सीट पर ही नीचे लुढ़क गया है. उसकी गर्दन में गोली लगी थी. कसाब ने धीरे से दरवाज़ा खोला और अपनी एके-47 को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया. उसकी उंगली ट्रिगर तक पहुंच गई और उसने पुलिस इंस्पेक्टर तुकाराम ओम्बाले के पेट में गोली चला दी.
लेकिन ओम्बाले ने एक-47 की नाल पकड़ ली और उसको अंत तक नहीं छोड़ा. इस बीच बहुत सारे पुलिस वालों ने पहुंच कर क़साब को घेर लिया और उसकी पिटाई करने लगे.
तभी कोई चिल्लाया, ‘रोको, रोको, हमें वो ज़िंदा चाहिए.’ क़साब को एक एंबुलेंस में डाल कर फ़्लोर पर लिटा कर हाथ पांव बाँध दिए गए. उसके बिल्कुल नए टेनिस जूते सड़क पर ही पड़े रह गए.
28 नवंबर, सुबह 2 बजे, ताज पैलेस होटल
मानेसर से तीन विमानों में ब्लैक कैट कमांडोज़ मुंबई पहुंच चुके थे. उनमें से 100 से अधिक कमांडोज़ को ताज ऑप्रेशन में लगाया गया था. होटल में करीब 600 कमरे थे. सीसीटीवी कवरेज समाप्त हो चुका था.
सबसे परेशानी की बात ये थी कि पूरा होटल स्टाफ़ होटल के बाहर निकल चुका था, इसलिए कमांडोज़ के पास न तो गेस्ट लिस्ट थी, और न ही उन्हें ये पता था कि किस कमरे में कौन रह रहा था.
हर कमरे में फ़ोन किए जा रहे थे, लेकिन लोग डर कर फ़ोन नहीं उठा रहे थे कि कहीँ हमलावरों को उनकी उपस्थिति का पता न चल जाए. एक डाटा एंट्री कर्मचारी फ़्लोरेस मार्टिस एक कमरे में फंसी हुई थीं. मेजर उन्नीकृष्णन ने बीड़ा उठाया कि वो उन्हें सुरक्षित निकाल कर लाएंगे.
वो अपने साथ छह लोगों की टीम ले कर गए. वो सीढ़ियों पर पोज़ीशन लेते हुए ऊपर पहुंचे. तभी उनके साथी सुनील यादव को गोली लगी. उन्नीकृष्णन पर भी बाईं तरफ़ से फ़ायर आया. उन्होंने सोचा कि वो दाहिनी ओर से जा कर पीछे से हमलावर को दबोच लेंगे. लेकिन उन लोगों ने वहाँ भी पोज़ीशन ली हुई थी.
उनका एक बर्स्ट उन्नीकृष्णन को लगा. उन्होंने तुरंत अपने साथियों को रेडियो कर आगाह किया, ‘आगे मत आओ.’
उस समय उनकी सांस बहुत तेज़ी से चल रही थी. इसके बाद उनके वाकी टाकी पर कोई गतिविधि नहीं हुई. मेजर उन्नीकृष्णन ‘मिसिंग’ थे, लेकिन उनके लोगों ने हमलावरों को ‘वसाबी’ रेस्तराँ तक सीमित कर दिया था.
ब्रिगेडियर गोविंद सिंह सिसोदिया बताते हैं, “ऊपर जाने से दो मिनट पहले ही मेरी उन्नीकृष्णन से बात हुई थी. मैंने उनसे कहा था, ‘टेक केयर ऑफ़ योरसेल्फ़.’ उनका जवाब था, ‘एवरी थिंग विल बी ऑलराइट.”
पहली बार ब्लैक कैट्स को लगा था कि हालात उनके नियंत्रण में आ रहे हैं, लेकिन इसकी उन्हें उन्नीकृष्णन की शहादत के रूप में क़ीमत चुकानी पड़ी थी.
28 नवंबर, दोपहर 4 बजे, वसाबी रेस्तराँ, ताज होटल
अब भी चारों फिदायीन मोर्चा संभाले हुए थे. दो लोग ग्राउंड फ़्लोर के हार्बर बार से कमांडोज़ पर फ़ायरिंग कर रहे थे जबकि दो लोग वसाबी रेस्तराँ से गोलियों की बौछार कर रहे थे. ब्रिगेडियर सिसोदिया ने ब्लैक कैट को हुक्म दिया कि वो वसाबी की खिड़कियों के टफ़ेन्ड ग्लास पर इसरायली स्नाइपर गन से निशाना लगाएं.
जैसे ही वो चटकते दिखाई दे, उनपर ट्राईपॉड पर रखे ग्रेनेड लॉंचर्स से फ़ायर किया जाए. जब धुंआ छटा तो ब्रिगेडियर सिसोदिया को वसाबी के अंदर का दृश्य साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा.
वो देख पा रहे थे कि सभी हमलावर अभी भी जीवित थे. उनमें से तीन ब्लैक कैट सैनिकों पर निशाना लगा रहे थे, जब कि चौथा शख्स एक सफ़ेद रुमाल हिला रहा था.
ब्रिगेडियर सोच रहे थे कि कहीं ये उनको लालच देकर अंदर बुलाने की कोशिश तो नहीं है. बाहर एनएसजी के प्रमुख ज्योति दत्त पत्रकारों को आश्वासन दे रहे थे कि ताज को शनिवार की सुबह होने तक मुक्त करा लिया जाएगा.
उधर इस तनाव भरे माहौल के बावजूद ब्रिगेडियर सिसोदिया अपने साथियों से मज़ाक में कह रहे थे, ‘हम अपनी वायुसेना को बुला कर पूरी इमारत को ही क्यों नहीं ध्वस्त कर देते? न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.’
29 नवंबर, सुबह 7 बजे, हार्बर बार, ताज होटल
ब्लैक कैट्स की दो टीमों ने हार्बर बार और वसाबी रेस्तराँ में दो आईईडी डिवाइस फेंकी. दो ज़बरदस्त धमाके सुने गए और इमारत से काला धुंआ और आग की लपटें निकलने लगीं. एक काली मानव आकृति होटल के बाहर गिरी.
उसके पैर इस तरह चल रहे थे जैसे वो हवा में साइकिल चलाने की कोशिश कर रहा हो. उसका पहना हुआ काला लोअर, बुरी तरह से फटे हुए शार्ट्स में तब्दील हो चुका था.
जब वो नीचे गिरा तो उसके साथ एक मरा हुआ कबूतर भी नीचे गिरा. वहाँ इंतज़ार कर रहे निशानेबाज़ों ने उसके सिर में एक और गोली उतार दी. ब्रिगेडियर सिसोदिया तुरंत दौड़ कर उसके पास पहुंचे. उसके चेहरे पर बारूद की पूरी पर्त लगी हुई थी और ऐसा लग रहा था कि उसके शरीर पर तारकोल का छिड़काव कर दिया गया हो.
उसकी मुट्टियाँ भिंची हुई थीं, जैसे वो बहुत दर्द में हो. ये अबू शुएब था जिसने लियोपॉल्ड रेस्तराँ में हमला किया था और फिर ताज होटल में घुस गया था.
कुछ दिन बाद, सुबह 10 बजे, जेजे अस्पताल बाइकुला
अजमल क़साब ने भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियों के सामने जब बोलना शुरू किया, तो वो रुका ही नहीं. उसको लालच दिया गया कि अगर उसने सब कुछ बता दिया तो उसे उसके साथियों से मिलवा दिया जाएगा, जिन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है.
जब वो दिन आया तो क़साब को पुलिस गाड़ियों के एक काफ़िले में गेट वे ऑफ़ इंडिया और ताज होते हुए बाइकुला के जेजे अस्पताल ले जाया गया.
उसने साथ चल रहे पुलिसकर्मियों से पूछा, ‘क्या मेरे साथी बुरी तरह से घायल हो गए हैं?’ अफ़सर ने कहा तुम अपनी आँखों से खुद ही देख लेना.
उसको एक कमरे में ले जाया गया जहां 9 स्टेनलेस स्टील की बड़ी ट्रेज़ रखी हुई थीं, जिनमें मारे गए फ़िदायीनों के शव रखे हुए थे. ताज में लड़ने वाले फ़िदायीनों के शवों को पहचानना बहुत मुश्किल था.
अजमल ने जैसे ही उन शवों को देखा, वो जोर से चिल्ला कर बोला, ‘मुझे यहाँ से ले चलो.’ उसको वापस उसकी जेल की कोठरी में लाया गया. वहाँ एक भारतीय अफ़सर उसका इंतज़ार कर रहा था.
उसने मुस्कराते हुए कहा, ‘तो अजमल क़साब, क्या तुमने उनके चेहरे पर नूर दिखाई दिया? और क्या तुम उनके शरीर से आती गुलाब की महक को सूंघ पाए?’
जैसे ही अजमल कसाब ने ये सुना, वो फूट फूट कर रोने लगा.
(अजमल कसाब के अभियोग पत्र, नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के पूर्व उपमहानिरीक्षक ब्रिगेडियर गोविंद सिंह सिसोदिया और कई अन्य इंटरनेट सोर्सेज से मिली जानकारियों पर आधारित)