बाल दिवस पंडित जवाहरलाल नेहरु के जन्म दिवस 14 नवंबर के दिन मनाया जाता हैं. जवाहरलाल नेहरु स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे और वे बच्चों को बहुत पसंद करते थे, इसलिए ही बच्चे उन्हें चाचा नेहरु कह कर पुकारते थे.

नेहरु परिवार ने देश की आजादी में भरपूर योगदान दिया और इसी का परिणाम रहा कि उन्हें देश वासियों ने बहुत पसंद किया और वे इस लोकतान्त्रिक देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने.

चाचा नेहरु को बच्चों से विशेष प्रेम था. वे अपना समय बच्चो के बीच बिताना बहुत पसंद करते थे और बच्चे भी इनके साथ सहज महसूस करते थे आसानी से इनसे जुड़ जाते थे अपने दिल की बात इनसे कर पाते थे इसलिए बाल दिवस के लिए नेहरु जी के जन्म दिवस से अच्छा कोई मौका नहीं हो सकता था.

बाल दिवस विश्व स्तर पर भी मनाया जाता है, जिसकी दिनांक 20 नवंबर हैं इसकी घोषणा 1 जून 1950 में  Women’s International Democratic Federation द्वारा की गई थी. विभिन्न देशों में भिन्न- भिन्न तारीख पर यह दिन मनाया जाता हैं. भारत देश में यह दिन 14 नवंबर को मनाया जाता हैं.[the_ad_placement id=”after-content”]

बाल दिवस इतिहास (Children’s Day History)
विश्व स्तर पर बाल दिवस मनाये जाने का प्रस्ताव श्री वी कृष्णन मेनन द्वारा दिया गया था, जिसके बाद सबसे पहली बार बाल दिवस अक्टूबर में मनाया गया. सभी देशों में इसे मनाये जाने एवम स्वीकृति मिलने के बाद संयुक्त महा सभा द्वारा 20 नवंबर को अन्तराष्ट्रीय बाल दिवस की घोषणा की गई.
बच्चो के अधिकारों के हनन को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उनके अधिकारों की भी घोषणा की गई और उसी के आधार पर बाल दिवस मनाये जाने की बात को पुरे विश्व ने स्वीकार किया.
भारत देश में कई बाल श्रमिक हैं, जबकि हमारे देश में 18 वर्ष से कम की आयु के बच्चो को किसी भी तरह का काम करने की इजाजत नहीं है. बाल अधिकारों को सामने रखने के लिए तथा उनके प्रति सभी को जगाने के लिए बाल दिवस का होना जरुरी हैं. इस एक दिन के कारण सरकार एवम अन्य लोगो का ध्यान इस ओरे करना जरुरी हैं. इस एक दिन से इस समस्या का समाधान आसान नहीं हैं लेकिन इस ओर सभी के ध्यान को केन्द्रित करने के लिए इस एक दिन का होना जरुरी हैं.
बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं अगर वे पढने लिखने की उम्र में काम करेंगे, आजीविका के लिए खून पसीना एक करेगे, तो देश का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा. सामान्य शिक्षा सभी का हक़ हैं और उसे ग्रहण करना आज के बच्चो का कर्तव्य बभी होना चाहिये तब ही देश का विकास संभव हैं.
बाल दिवस एक ऐसा आईना होना चाहिये, जिसके जरिये सभी को बालको के अधिकार का पता चले और इसका हनन करने वालों को इस बात की गहराई का पता चले, कि वे किस प्रकार देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. तभी बाल दिवस का होना कारगर सिद्ध होगा.

कैसे मनाया जाता हैं ? (Children’s Day Celebration)
भारत देश में बड़ी धूमधाम से बाल दिवस मनाया जाता हैं. इस दिन पंडित नेहरु को श्रधांजलि दी जाती हैं. बच्चो के चहेते चाचा नेहरु के जीवन के पन्नो को आज के दिन पलटा जाता है, आने वाली पीढ़ी को आजादी के लिए दिये गये इनके योगदान के बारे में बताया जाता हैं.
विभिन्न तरीको से बाल दिवस मनाया जता हैं :
विशेषकर विद्यालयों में बाल दिवस के उपलक्ष्य में आयोजन किये जाते हैं. कई तरह की प्रतियोगिता रखी जाती हैं.
कई तरह के नाटकों का आयोजन किया जाता हैं, नृत्य, गायन एवम भाषण का भी आयोजन किया जाता हैं.
बच्चो के लिए खासतौर पर मनाये जाने वाले इस त्यौहार में बच्चों को उनके अधिकारों, उनके कर्तव्यों के बारे में अवगत कराया जाता हैं.
छोटे-छोटे बच्चों के मनोरंजन के लिये पिकनिक एवम कई खेल कूद का आयोजन किया जाता हैं.
इस दिन रेडियो पर भी कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं जो बच्चो को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं.
इस तरह पुरे देश में स्कूल ,सरकारी संस्थाओं एवम कॉलोनी में बाल दिवस का त्यौहार मनाया जाता हैं. बच्चो के उत्साह को बढ़ाने के लिये कई प्रतियोगिता रखी जाती हैं जिससे उनके अंदर के कई गुणों का पता चलता हैं.और इसी से बच्चों का सर्वांगिक विकास होता हैं.

किसी ने सही कहा था बचपन एक बार गुजर गया तो लौटकर कभी वापस कभी नहीं आता है। बचपन का हर पल सुहावना था, क्योंकि आखिरकार वो बचपन था। आज 14 नवंबर का दिन बच्चों के लिए समर्पित है। यह दिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की याद में मनाया जाता हैं क्योंकि वह बच्चों से बेहद प्यार करते थे। उनका मानना था कि बच्चे ही देश का उज्ज्वल भविष्य हैं। नेहरू जी का बच्चों के  प्रति इतना प्रेम होने के कारण ही बच्चे उन्हें प्यार से चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे। उनका मानना था कि बच्चे गुलाब के समान बेहद ही कोमल होते हैं। लेकिन आज के दौर में वही गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरती और मुरझाती जा रही हैं।[the_ad_placement id=”after-content”]

दिन पर दिन बच्चों का बचपन उनसे छीना जा रहा है। अपनी पीठ पर बढ़ते बोझ के कारण वह किसी गुमनाम जिंदगी में बस जीये जा रहे हैं। जहां उन्हें शुरुआत से ही किताबों के बोझ तले दबा दिया जाता है।  इस बोझ का सफर कुछ खास नहीं होता बस तय करना पड़ता है। यही कारण है कि उनका बचपन कहीं खो सा गया है। कहना गलत नहीं होगा कि आज का दौर पूरी तरह से आधुनिक हो गया है। इसी श्रेणी में इस आधुनिकीकरण ने सबसे ज्यादा बच्चों के बचपन को प्रभावित किया है। प्रभावित कुछ इस कदर कि आजकल बच्चे अपना पूरा दिन स्मार्ट फोन पर गुजार देते हैं। जिस उम्र में उनके हाथ में अच्छी-अच्छी किताबें, बल्ला गेंद होना चाहिए उस उम्र में वह अपना पूरा समय स्मार्ट फोन, टीवी, वीडियो गेम नामक उपकरण पर बिता देते हैं। यह क्या होता जा रहा हैं आजकल के बच्चों को ? लेकिन इसके पीछे हम सिर्फ बच्चों को दोषी नहीं ठहरा सकते। जी हां इन सब का कारण कहीं न कहीं बच्चों के माता-पिता भी हैं, जो सिर्फ उनकी हाई क्लास पढ़ाई पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं। इसके अलावा उन्हें बाहर खेलने की बजाय उनके हाथो में स्मार्ट फोन थमा देना ही उनके खुशनुमा और यादगार बचपन को कहीं गायब करता जा रहा है।
इसके अलावा एक तरफ वो बचपन भी है जो अपने गुजारे के लिए अपने हाथों में किताब की बजाय सामान बेचकर अपना बचपन गुजार रहा है। साथ ही में भारत में करीब 1.20 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी के कारण अपना बचपन खोते जा रहे हैं। लेकिन अगर आज चाचा नेहरू जिंदा होते तो वह भारत के किसी भी गुलाब के फूल को इस तरह मुरझाने नहीं देते। हम सबको 14 नंवबर के दिन यह प्रण लेना होगा कि हमें बच्चों को उनका असली बचपन लौटाना होगा, जहां वह खूब पढ़े-लिखें, खूब खेलें और मस्ती करें। तभी यह दिन असली मायने में बाल दिवस कहलाएगा।

आईये पंड‍ित जवाहरलाल नेहरू से जुड़े कुछ प्रेरक प्रसंग बताते हैं….

नेहरू की आत्मनिर्भरता 

नेहरूजी इंग्लैंड के हैरो स्कूल में पढ़ाई करते थे। एक दिन सुबह अपने जूतों पर पॉलिश कर रहे थे तब अचानक उनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू वहां जा पहुंचे।
जवाहरलाल को जूतों पर पॉलिश करते देख उन्हें अच्छा नहीं लगा, उन्होंने तत्काल नेहरूजी से कहा- क्या यह काम तुम नौकरों से नहीं करा सकते। जवाहरलाल ने उत्तर दिया- जो काम मैं खुद कर सकता हूं, उसे नौकरों से क्यों कराऊं?
नेहरूजी का मानना था कि इन छोटे-छोटे कामों से ही व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है।
शिष्टाचार पर नसीहत
बात उन दिनों की है जब पंडित जवाहरलाल नेहरू लखनऊ की सेंट्रल जेल में थे। लखनऊ सेंट्रल जेल में खाना तैयार होते ही मेज पर रख दिया जाता था। सभी सम्मिलित रूप से खाते थे।
एक बार एक डायनिंग टेबल पर एक साथ सात आदमी खाने बैठे। तीन आदमी नेहरूजी की तरफ और चार आदमी दूसरी तरफ।
एक पंक्ति में नेहरूजी थे और दूसरी में चंद्रसिंह गढ़वाली। खाना खाते समय शकर की जरूरत पड़ी। बर्तन कुछ दूर था चीनी का, चंद्रसिंह ने सोचा- ‘आलस्य करना ठीक नहीं है, अपना ही हाथ जरा आगे बढ़ा दिया जाए।’ चंद्रसिंह ने हाथ बढ़ाकर बर्तन उठाना चाहा कि नेहरूजी ने अपने हाथ से रोक दिया और कहा- ‘बोलो, जवाहरलाल शुगर पाट (बर्तन) दो।’
वे मारे गुस्से के तमतमा उठे। फिर तुरंत ठंडे भी हो गए और समझाने लगे- ‘हर काम के साथ शिष्टाचार आवश्यक है।
भोजन की मेज का भी अपना एक सभ्य तरीका है, एक शिष्टाचार है। यदि कोई चीज सामने से दूर हो तो पास वाले को कहना चाहिए- ‘कृपया इसे देने का कष्ट करें।’ शिष्टाचार के मामले में नेहरूजी ने कई लोगों को नसीहत प्रदान की थी। ऐसे थे जवाहरलाल नेहरू।[the_ad_placement id=”after-content”]
नेहरू की विनोदप्रियता 
एक बार एक बच्चे ने ऑटोग्राफ पुस्तिका नेहरूजी के सामने रखते हुए कहा- साइन कर दीजिए।
बच्चे ने ऑटोग्राफ देखे, देखकर नेहरूजी से कहा- आपने तारीख तो लिखी ही नहीं!
बच्चे की इस बात पर नेहरूजी ने उर्दू अंकों में तारीख डाल दी! बच्चे ने इसे देख कहा- यह तो उर्दू में है।
नेहरूजी ने कहा- भाई तुमने साइन अंगरेजी शब्द कहा- मैंने अंगरेजी में साइन कर दी, फिर तुमने तारीख उर्दू शब्द का प्रयोग किया, मैंने तारीख उर्दू में लिख दी।
ऐसा था नेहरूजी का बच्चों के प्रति विनोदप्रियता का लहजा।