आज देशभर में राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जा रहा है। भारतीय संविधान के मुताबिक, जनता ही इस अनूठे लोकतंत्र की बुनियाद है। जहां सरकार को जनता चुनती है। जिसे 5 साल में एक बार केंद्र और राज्य सरकार चुनने का सीधा अधिकार है। आज उसी जनता का दिन है।
तो अब ऐसे में सवाल है कि मतदाता दिवस क्यों मनाया जाता है? मतदाताओं को समर्पित ये दिवस कब से मनाना शुरू हुआ? देश में कुल कितने मतदाता हैं? एक लोकसभा और विधानसभा सीट में कितने मतदाता हैं? किस लोकसभा में सबसे ज्यादा और किस पर सबसे कम मतदाता हैं? तो आइए जानते हैं, वो सबकुछ जो एक मतदाता के रूप में जानना जरूरी है…
मतदाता दिवस क्यों मनाया जाता है?
इस दिन को मनाने के पीछे दो वजहें थीं, पहली समावेशी (Inclusive) और दूसरी गुणात्मक भागीदारी (Qualitative Participation)। इसका मकसद था कि कोई भी मतदाता मतदान करने में पीछे न रह जाए। इसके पीछे एक और मकसद था। चुनाव आयोग इस दिन ऐसे मतदाताओं की पहचान करता है, जिनकी उम्र 18 साल हो चुकी हो। उन सभी के नाम मतदाता सूची में शामिल किए जाते हैं। 2021 में मतदाता दिवस की थीम ‘सभी मतदाता सशक्त, सतर्क, सुरक्षित और जागरूक बनें’ है।
कब से शुरू हुआ है?
साल 2011 में UPA-2 की सरकार थी। उस समय राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। इस साल चुनाव आयोग की स्थापना को 61 साल हो चुके थे। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 25 जनवरी से राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी। 25 जनवरी 2021 का दिन 11वीं बार राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
मतदाता दिवस कैसे मनाया जाता है?
2011 के बाद से हर साल 25 जनवरी के दिन को मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी एक थीम होती है। इस दिन सरकार मतदाताओं को जागरूक करने के लिए अभियान चलाती है। खासकर जो मतदाता पहली बार वोटर हैं, या जिनके नाम अब तक मतदाता सूची में नहीं हैं। इस दिन नेशनल अवॉर्ड से चुनाव प्रक्रिया में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाता है।
भारत में कौन वोट दे सकता है?
भारत के संविधान के मुताबिक, जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 साल या उससे ज्यादा है। बिना किसी भेदभाव या सिटीजनशिप एक्ट के तहत इन लोगों को वोटिंग अधिकार दिया जाता है। जिन NRI के पास इंडियन पासपोर्ट होता है, उन्हें भी वोट देने का अधिकार होता है।
चुनाव आयोग का क्या रोल होता है ?
भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी। ये संस्था संविधान के आर्टिकल 324 के अंतर्गत आती है। इसमें तीन सदस्य प्रमुख होते हैं, पहले मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य आयुक्त शामिल होते हैं। इन्हें राष्ट्रपति की तरफ से नियुक्त किया जाता है। सभी का कार्यकाल 6 साल का होता है। ये एक संवैधानिक संस्था है। देश में होने वाले सभी चुनावों को आयोजित करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है।
इसमें लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव शामिल हैं। चुनाव के दौरान चुनाव आयोग एक गार्जियन की भूमिका में होता है। यही चुनाव के सभी दिशा- निर्देश तय करता है। जो उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल पर लागू होते हैं। अगर चुनाव के दौरान इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होता है, तो चुनाव आयोग में इसकी शिकायत की जा सकती है। ये संस्था चुनाव से जुड़े सभी तरह के फैसले खुद लेती है। चुनाव के खर्चों पर नजर रखने के लिए इंडियन रेवेन्यू सर्विस (IRS) के अफसर इलेक्शन ऑब्जर्वर के रूप में होते हैं।
एक लोकसभा और विधानसभा सीट पर कितने मतदाता होते हैं ?
संविधान के मुताबिक 10 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सांसद होना चाहिए। लेकिन भारत में ये आबादी 25 लाख है। राज्यों में आबादी के हिसाब से संख्या को बढ़ाने और घटाने की बात कही गई है। 1971 में देश और दूसरे राज्यों की सीटों पर संख्या बढ़ती-घटती रही है। इस हिसाब से 30 लाख लोगों पर एक सांसद और तमिलनाडु में करीब 20 लाख लोगों पर एक सांसद है। अगर 10 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट को बांटा जाए तो भारत में इसकी संख्या बढ़कर 1375 सीटें हो जाएंगी। अकेले यूपी में ये सीट का आंकड़ा 80 से बढ़कर 238 हो जाएगा। संविधान के मुताबिक, जिन राज्यों में आबादी 6 लाख या उससे कम है, तो 10 साल वाला कॉन्सेप्ट वहां लागू नहीं होगा। ऐसे में इस तरह के राज्यों में एक सांसद तो रहेगा।
लोकसभा और विधानसभा की सीटें कैसे तय की जाती हैं?
- लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या निर्धारित करने की जिम्मेदारी परिसीमन आयोग की है। 1952 में इसका गठन किया गया था।
- संविधान के आर्टिकल 82 में आयोग का काम भी तय किया गया है। इसके तहत हर दस साल में जनगणना के आधार पर किसी भी क्षेत्र का परिसीमन तय किया जाता है।
- इमरजेंसी के समय संविधान में 42वां संशोधन किया गया। इसमें 1971 की जनगणना के आधार पर विधानसभा और लोकसभा सीट की संख्या को स्थिर कर दिया गया।
- 2001 में संविधान में 84वां संशोधन किया। इसके तहत 2026 में जनगणना करने के बाद इसके आंकड़े के आधार पर लोकसभा के परिसीमन की बात की गई है। 2026 के बाद 2031 में जनगणना होगी। इसके बाद ही लोकसभा की सीटों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है। 2034 तक के लोकसभा चुनाव में सीटें 543 ही रहेंगी।
- राज्यों की विधानसभा के लिए जुलाई 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया। दिसंबर में 2007 में परिसीमन आयोग ने अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को सौंप दी। 2008 में सिफारिशें मंजूर की गईं, तब जाकर कई राज्यों का परिसीमन किया गया।