इस स्टोरी की शुरुआत मैं एक कायदे की बात से करूंगा –

हमारा समाज जस्टिस यानी न्याय पर टिका हुआ है. एक जस्टिस हमें प्रकृति के साथ भी करना होता है. प्रकृति के साथ जस्टिस का मतलब – जैसा लिया वैसा दिया.

हमारे देश में प्रकृति से जुड़े मुद्दों की ज़िम्मेदारी दो कंधों पर टिकी है –

1. एनवायरनमेंट मिनिस्ट्री यानी पर्यावरण मंत्रालय.
2. NGT यानी नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल.

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पर्यावरण मंत्रालय का काम है प्रकृति का ख़याल करते हुए नियम-कानून बनवाना. केंद्र और राज्य कानून का पालन करवाते हैं. जब कोई नियम तोड़ता है तो मामला अदालत में जाता है. NGT अदालत है. स्पेशल वाली. इसका काम है प्रकृति से जुड़े मामलों की जल्द सुनवाई करके फैसला सुनाना.

पिछले दिनों NGT ने पर्यावरण मंत्रालय को पानी से जुड़े एक मुद्दे पर निर्देश दिया था. मुद्दा था RO वाटर प्यूरीफायर के इस्तेमाल का. और निर्देश थे –

जिन इलाकों के पानी में TDS (Total Dissolved Solids) 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है, वहां RO प्यूरीफायर पर बैन लगाया जाए.

मंत्रालय ने निर्देश का पालन अब तक नहीं किया. तो NGT ने मंत्रालय को देरी के लिए फटकार लगाई है.

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तबसे ही मैं इसपर लिखना चाहता था, लेकिन प्रोफेशनल जिंदगी में समय नहीं मिल पाने के कारण अपने दिल की बात आपतक नहीं पहुँचा पा रहा था। अब समय मिला है तो लेकर हाज़िर हूँ  आपकी RO की समझ को पक्का करना इस लेख का मकसद है. RO क्या है, क्यों है, कैसे काम करता है? और इसमें दिक्कत क्या है?

आईये जानते हैं सबकुछ……

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RO का फुलफॉर्म है रिवर्स ऑस्मोसिस. ये पानी साफ करने की एक तकनीक है. रिवर्स ऑस्मोसिस को समझने के लिए पहले हमें ऑस्मोसिस को समझना होगा. ऑस्मोसिस एक खास तरह की हलचल को कहते हैं. लगभग वैसी हलचल जैसी देश की सरहद पर होती है. ऑस्मोसिस की कहानी दरअसल दो टाइप के लिक्विड मिक्सचर्स की कहानी है. RO प्यूरिफायर के संदर्भ में एक लिक्विड मिक्सचर में होगा साफ पानी. और दूसरे मिक्सचर में होगा मिलावट वाला पानी, गंदा पानी.

ये अलग-अलग होते तो कोई कहानी ही न होती. तो ऑस्मोसिस नाम की घटना घटे, इसके लिए हम इन दोनों के बीच एक सरहद बना देंगे. इस सरहद का नाम है – सेमी पर्मीएबल मेंब्रेन. मेंब्रेन यानी झिल्ली. आसान भाषा में कहें तो छन्नी. और सेमी पर्मीएबल मेंब्रेन मतलब ऐसी छन्नी जो चुनिंदा मॉलीक्यूल्स को पार जाने की इजाज़त दे. मॉलीक्यूल्स मतलब अणु. जैसे कोई देश अपने नागरिकों से मिलकर बनता है वैसे ही एक लिक्विड मिक्सचर मॉलीक्यूल्स से बनता है. मॉलीक्यूल्स आपको अपनी आंखों से नहीं दिखेंगे. बहुत छोटे-छोटे होते हैं. लिक्विड मिक्सचर में जनरली दो टाइप के मॉलीक्यूल्स होते हैं

पहले होते हैं सॉल्वेंट. सॉल्वेंट मतलब वो जो मेजोरिटी में हैं. आमतौर पर लिक्विड मिक्सचर में पानी ही सॉल्वेंट होता है. क्योंकि सबसे ज़्यादा मात्रा पानी की होती है.

अब कोई मेजोरिटी में है तो कोई माइनोरिटी में भी होगा. लिक्विड मिक्सचर में जो माइनोरिटी हों होते हैं उनको सॉल्यूट कहते हैं.

पानी ज़्यादा है तो पानी सॉल्वेंट हुआ. नमक कम है तो नमक हुआ सॉल्यूट.

आगे बढ़ने से पहले एक बात गांठ बांध लीजिए, नहीं तो सॉल्वेंट और सॉल्यूट में कन्फ्यूज़ होते रहेंगे. किसी भी लिक्विड मिक्सचर में –

सॉल्वेंट – जो ज़्यादा है, मेजॉरिटी में है.
सॉल्यूट – जो कम है, माइनॉरिटी में है.

ये तो हुए कहानी के एलीमेंट्स. हर कहानी में एलीमेंट्स के साथ कुछ परिस्थितियां भी होती हैं. ऑस्मोसिस में परिस्थिति ये है कि मैंब्रेन के एक तरफ शुद्ध साफ सॉल्वेंट यानी पानी होगा. और दूसरी तरफ सॉल्वेंट और सॉल्यूट दोनों का मिक्सचर होगा. दूसरी तरफ भी सॉल्वेंट ही मेजोरिटी में होगा, लेकिन सॉल्यूट के मॉलीक्यूल्स भी ठीक-ठाक मात्रा में मौजूद होंगे.

परिस्थितियां पैदा हो गई हैं. अब एक्शन होगा. हलचल होगी. लेकिन हमारी हलचल का मकसद तोड़फोड़ नहीं है. ये हलचल गांधीवादी है. ये शांति चाहती है. संतुलन चाहती है. संतुलन – जिसे अंग्रेज़ी में कहा जाता है इक्विलिब्रियम.

पॉइंट टू बी नोटेड – दूसरी तरफ भी सॉल्वेंट ही मेजोरिटी में हैं. बस उसके साथ सॉल्यूट के मॉलीक्यूल्स भी ठीक-ठाक मात्रा में मौजूद हैं.

‘जीवन में संतुलन चाहिए’ – इक्विलिब्रियम

इक्विलिब्रियम शब्द ईक्वल से बना है. इक्वल मतलब बराबर. तो इक्विलिब्रियम मतलब बराबरी या संतुलन. किस चीज़ का संतुलन? दोनों तरफ के सॉल्वेंट कॉन्सनट्रेशन में संतुलन. आएं? सॉल्वेंट तो ठीक है था, अब ये सॉल्वेंट कॉन्सनट्रेशन क्या होता है?

कॉन्सनट्रेशन बताता है कि मिक्सचर में कौन कितनी तादात में है. उदाहरण के लिए अपन पानी और शक्कर का मिक्सचर ले लेते हैं.

# सिंपल भाषा में –
मिक्सचर में शक्कर का कॉन्सनट्रेशन पूछना हो तो पूछिएगा कि मिक्सचर का कितना प्रतिशत हिस्सा शक्कर है. और पानी का पूछना हो मिक्सचर में पानी का प्रतिशत.

# स्टैंडर्ड टैकनीकल भाषा में –
मिलीग्राम प्रति लीटर. अगर एक लीटर मिक्सचर लें तो उसमें कितने ग्राम शक्कर होगी? यही होगा सॉल्यूट(शक्कर) का कॉन्सनट्रेशन. और कितने ग्राम पानी है, ये बताएगा सॉल्वेंट(पानी) कॉन्सनट्रेशन.

(एक डिब्बी तोताब्रांड रंग को हम एक मग्गे में घोलें और एक बाल्टी में घोलें तो जो फर्क नज़र आता है, उसे ही ज्ञानियों ने कॉन्सन्ट्रेशन का फर्क कहा  है.)

इक्विलिब्रियम का सिद्धांत कहता है कि किसी भी सेमी पर्मीएबल मेंब्रेन के दोनों तरफ सॉल्वेंट का कॉन्सन्ट्रेशन बराबर होना चाहिए. संतुलन.

अगर मेंब्रेन के एक तरफ सॉल्वेंट का कॉन्सन्ट्रेशन कम हुआ, तो दूसरी तरफ से सॉल्वेंट आकर उसमें मिलने लगेगा. क्योंकि उसे संतुलन बनाना है. यही कहलाता है ऑस्मोसिस.

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एक कंटेनर लिया. उसमें एक सैमीपर्मीएबल फिट कीजिए. एक तरफ चिंटू डालिए एक तरफ पिंटू. फिर ऑस्मोसिस का नतीजा देखिए.

ऑस्मोसिस के सिद्धांत को अब अपन एक उदाहरण में उतारेंगे. फर्ज़ कीजिए आपके पास दो गिलास पानी है – एक नाम पिंटू और दूसरे का नाम चिंटू. पिंटू वाले गिलास में एक चम्मच शक्कर पड़ी है और चिंटू वाले में तीन चम्मच. अभी तक जो हम समझ चुके हैं, उसके मुताबिक ये कहा जा सकता है कि पिंटू वाले गिलास में पानी का कॉन्सन्ट्रेशन ज़्यादा है. अब अगर पिंटू और चिंटू के घोल के बीच एक सेमी पर्मीएबल मेंब्रेन रख दें तो पानी पिंटू से निकलकर चिंटू में जाने लगेगा.

#. क्यों जाएगा?

– संतुलन बनाने.

#. कैसे जाएगा?

– ऑस्मोसिस के ज़रिए.

एक अच्छा स्टूडेंट सवाल करेगा कि संतुलन बनाने के लिए शक्कर पिंटू की तरफ क्यों नहीं आ गई? वो क्या लॉट साहब हैं जो जगह से नहीं हिल सकतीं. इसका जबाव ऑस्मोसिस में इक्वीलिब्रियम की टेंडेंसी में मिलता है. अमूमन सॉल्यूट(नमक, शक्कर, गंदगी इत्यादि) के मॉलीक्यूल का आकार सॉल्वेंट (पानी) के मॉलीक्यूल से बड़ा होता है. तो झिल्ली के छोटे-छोटे छेदों से निकलना सॉल्वेंट के लिए अपेक्षाकृत आसान रहता है. हमारे उदाहरण में शक्कर का आकार पानी से बड़ा होता है. तो वो जगह पर बनी रहती है. आने-जाने का काम पानी करता है. क्योंकि वो आसानी से कर सकता है.

ऑस्मोसिस है तो बढ़िया. लेकिन इसके भरोसे छोड़ेंगे तो साफ पानी जाकर गंदे पानी में जाकर मिल जाए. सॉल्यूशन – ऑस्मोसिस को उलटा चला दो. पानी को गंदे से साफ की तरफ भेजो. यही सिंपल सा आइडिया ऑस्मोसिस से पानी साफ करने का मूलमंत्र है. अपने को गाड़ी उसी स्पीड में चलानी है, बस रिवर्स गेयर लगाकर. हेमा मालिनी इसी तरह के एक रिवर्स गेयर के विज्ञापन में आती हैं.

‘प्रेशर में लोग क्या-क्या नहीं करते?’ – रिवर्स ऑस्मोसिस

ऑस्मोसिस रिवर्स करने हेतु कम सॉल्वेंट कॉन्सनट्रेशन वाली साइड(B) से प्रेशर देना होगा. दूसरी तरफ(E) साफ पानी इकट्ठा हो जाएगा.
ऑस्मोसिस रिवर्स करने हेतु कम सॉल्वेंट कॉन्सनट्रेशन वाली साइड(B) से प्रेशर देना होगा. दूसरी तरफ(E) साफ पानी इकट्ठा हो जाएगा.

 

सॉल्वेंट (पानी) के मॉलिक्यूल जिस उत्साह में कूद-कूदकर हमारी सेमी-पर्मीएबल मेंब्रेन को पार करते हैं, उसके पीछे दैवीय प्रेरणा नहीं होती. उसके पीछे होता है प्रेशर. सॉल्वेंट अपने अणुओं पर झिल्ली के पार कूदने के लिए ऑस्मोटिक प्रेशर बनाता है. हमें इसका ठीक उलटा करना है तो दूसरी तरफ से प्रेशर बनाना होगा. मिलावट वाले पानी की तरफ. ताकि इस साइड से पानी के मॉलीक्यूल्स साफ पानी वाली साइड जाने की हिम्मत कर सकें. जब पर्याप्त प्रेशर उलटी तरफ से लगता है तो करिश्मा होता है. सारे सिद्धांतों के उलट गंदा पानी गंदगी को झिल्ली के एक तरफ छोड़कर साफ पानी में जाकर मिलने लगता है. और तब देवता पुष्प-वर्षा करते हैं. साफ पानी की गंगा बहाने के लिए ये भागीरथ 2.0 का तरीका है – रिवर्स ऑस्मोसिस.

NGT को RO से क्या दिक्कत है?

RO वाटर प्यूरिफायर का इस्तेमाल हम लोग पानी से गंदगी या ऐसे सॉल्ट कम करने के लिए करते हैं जिनसे शरीर को नुकसान पहुंचता है. ज़मीन में जितने गहरे जाकर पानी निकालेंगे, इन सॉल्ट्स की मात्रा बढ़ती जाती है. तो खारे पानी वाली जगहों के लिए RO एक क्रांतिकारी तकनीक है. लेकिन RO से सिर्फ साफ पानी ही नहीं निकलता. RO साफ पानी से कहीं ज़्यादा खारा पानी बाहर निकालता है. उसमें सॉल्ट्स की मात्रा कहीं ज़्यादा होती है. इतनी ज़्यादा कि प्रकृति के लिहाज़ से ये एक पॉल्यूटेंट हो जाता है. ये भले साफ दिखता है, लेकिन ज़मीन और दूसरी वॉटर बॉडीज़ को खारा कर देता है.

NGT को RO से दिक्कत नहीं से नहीं है. उसका ज़ोर इस बात पर है कि RO से कौनसा पानी साफ किया जा रहा है. NGT द्वारा बनाई एक एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक

जिस पानी में 500 मिलीग्राम प्रतिलीटर से कम सॉलिड्स हैं, वो पानी पीने लायक है. उस पानी को RO से साफ करने पर न केवल पॉल्यूशन बढ़ेगा, बल्की पानी से ज़रूरी मिनरल्स की मात्रा कम हो जाएगी. जो कि स्वास्थ के लिए ठीक नहीं.

अगर आपके यहां का पानी खराब है तो कोई बात नहीं. लेकिन RO के वेस्ट-वॉटर को ऐसे ही न बहाएं. RO के वेस्ट-वॉटर का इस्तेमाल और दूसरे कामों के लिए कर लें. जैसे कि हम लोग उस पानी से पोंछा लगाते हैं.

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