एक्सपर्ट बताते हैं कि आज से 25 करोड़ साल पहले धरती पर ज़मीन के नाम पर केवल एक बड़ा-सा द्वीप था. फिर धरती में सैकड़ों साल में कभी धीरे, तो कभी तेज़ तमाम गतिविधियाँ हुईं. या यूं कहें कि टेक्टॉनिक प्लेट्स चलती गईं, और कारवां बनता गया. पहले वो इकलौता द्वीप दो बड़े भागों में बंटा, फिर सात भागों में बंट गया. इससे हमें मिले सात महाद्वीप. सात महाद्वीप कौन से हैं, ये हमसब स्कूल के जियोग्राफी की किताब में हमेशा पढ़ते हैं!
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जैसा कि हमने अभी बताया, आपने भूगोल की किताबों में धरती पर मौजूद सात महाद्वीपों के बारे में पढ़ा होगा. लेकिन 2017 में एक और महाद्वीप का पता चला. इसे नाम दिया गया ज़ीलैंडिया. लेकिन आप कहेंगे जब 2017 में पता चला था, तो अब क्यों बता रहे हैं? वो इसलिए कि इसकी मैपिंग शुरू हो गई है. इसे वास्तविक मानकर वैज्ञानिकों ने काम शुरू कर दिया है.
नए महाद्वीप ज़ीलैंडिया के बारे में बात करने से पहले छोटी-छोटी, मगर मोटी बातें जान लेते हैं क्योंकि महाद्वीप से पहले भी कई चीजें होती हैं जिन्हें जानना जरूरी है-
1. आईलैंड यानी द्वीप
जमीन का वो टुकड़ा, जो चारों ओर पानी से घिरा होता है. कई बार आपने खबरों में सुना होगा कि फलाने ने आईलैंड खरीद लिया.
2. कॉन्टिनेंट यानी महाद्वीप
द्वीप का बड़ा एरिया महाद्वीप कहलाता है. अंग्रेजी में इसके लिए टर्म यूज करते हैं- लार्ज कंटिगुअस लैंड. कई हजार किलोमीटर का एरिया. जितने महाद्वीप हैं, वो कहीं न कहीं पानी से घिरे हुए हैं. ऐसा कोई महाद्वीप नहीं है, जो लैंडलॉक हो. यानी चारों ओर से स्थल से घिरा हो. दुनिया में ऐसे सात महाद्वीप हैं. अब आठवें की बात हो रही है.
3. केप यानी अंतरीप
तीन ओर से पानी से घिरा छोटा भूभाग, उसे केप कहते हैं. जैसे अफ्रीका के नीचे ‘केप ऑफ़ गुड होप’. जब तक स्वेज़ नहर का निर्माण नहीं हुआ था, उस समय अंग्रेज और अन्य व्यापारी व्यापार के लिए आते थे, तो पूरा अफ्रीका घूमकर आते थे. अफ्रीका के नीचे का जो एरिया है, वहां ये लोग अपना लंगर डालते थे. उनको ये आशा देता था कि वो सही रास्ते पर हैं. आगे ऐसे ही चलना है. इसलिए इसका नाम ‘केप ऑफ़ गुड होप’ पड़ा.
4. पेनसुला यानी प्रायद्वीप
तीन ओर से पानी से घिरा बड़ा भूभाग. जैसे भारत, जो तीन ओर से पानी से घिरा है, लेकिन बहुत बड़ा है, इसे प्रायद्वीप या पेनसुला कहते हैं. दोस्तों अब हम बात करते हैं महाद्वीप की जिसके लिए हमने वीडियो शुरू किया था हमने आपको बताया था न कि पहले एक ही महाद्वीप था. इसका नाम था पैंजिया (Pangaea). लेकिन कई कारणों से और पृथ्वी के आंतरिक बलों के कारण उत्तर और दक्षिण दिशा में प्लेटों में आपस में खिंचाव हुआ. इसके बाद दो महाद्वीप बने. एक हुआ लॉरेशिया और दूसरा हुआ गोंडवाना. जो नीचे की तरफ यानी दक्षिण की तरफ आया, वो कहलाया गोंडवाना. और जो ऊपर की तरफ गया, वो कहलाया लॉरेशिया. हमारा भारत गोंडवाना में आता था. इसके अलावा अफ्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया भी. दूसरी ओर उत्तर अमेरिका और यूरोप, ये सब गए लॉरेशिया में.
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पैंजिया
दोस्तों जब एक परिवार टूटकर दो परिवार बनता है, तो ये टूटना रुकता नहीं है. विस्तार होता है, तो वो भी टूटता है. ऐसा ही विस्तार हुआ लॉरेशिया और गोंडवाना में. लॉरेशिया टूटकर एशिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका और यूरोप वगैरह बने. गोंडवाना टूटकर अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया बन गया. इस तरह से आप सात महाद्वीप के बारे में जानते हैं- उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप, एशिया ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका. आपको जानकर हैरानी होगी कि घर टूटने का ये सिलसिला अब भी जारी है. इसका ताजा उदाहरण हमें देखने को मिल रहा है अफ्रीका महाद्वीप में. अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी तट पर फॉल्ट बनना शुरू हो गया है. फॉल्ट यानी दो चट्टानों के बीच खिंचाव की वजह से दरारें बनना शुरू हो जाती हैं, तो उसे फॉल्ट कहते हैं. वैसी ही दरारें, जैसे पेंजिया के टूटने पर बनी थीं. पूर्वी अफ्रीका में फॉल्ट नजर आने लगे हैं. आने वाले सालों में अफ्रीका का पूर्वी एरिया अलग हो जाएगा.
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दोस्तों अबतक आपने जाना कि कैसे महाद्वीप अलग होता है. अब बात आठवें महाद्वीप की. जिसका नाम है ज़ीलैंडिया. नाम से ही साफ हो रहा है कि न्यूज़ीलैंड से मिलता-जुलता नाम या इसके आसपास का इलाका. ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के इस्टर्न साइड में न्यूजीलैंड की तरफ जाने पर वहां का समुद्र उतना गहरा दिखाई नहीं देता, जितनी गहराई आम तौर पर दिखाई देती है. ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप की गहराई में जाएंगे, तो ओशियाना का इलाका पड़ता है. ओशियाना को चार ग्रुप में बांटा गया है-माइक्रोनेशिया, मलेशिया, पोलिनेशिया और ऑस्ट्रेलिया. न्यूजीलैंड का इलाका पोलिनेशिया में आता है. न्यूजीलैंड और आसपास के इलाके को ही नाम दिया गया है ज़ीलैंडिया. ज़ीलैंडिया के पूरे इलाके का 94 प्रतिशत हिस्सा पानी में डूबा हुआ है. सिर्फ छह प्रतिशत, जिसमें न्यूजीलैंड और न्यू कैलिडोनिया के इलाके पानी से ऊपर हैं, वो दिखाई देते हैं.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस खोए हुए महाद्वीप का क्षेत्रफल करीब 43 लाख वर्ग किलोमीटर है. माना जा रहा है कि इस महाद्वीप में नेचुरल गैस, मिनरल्स बहुत हैं. इसका सबसे ज्यादा फायदा न्यूजीलैंड को होगा. 2017 में इस महाद्वीप की खोज पूरी कर ली गई थी. हालांकि वैज्ञानिक 1995 से इस पर रिसर्च कर रहे थे.
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अब 2020 में इस महाद्वीप को वास्तविक मानकर वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं. न्यूज़ीलैंड की GNS Science नाम की सरकारी एजेंसी सर्वे करवा रही है. इसमें एक वैज्ञानिक डॉक्टर निक मॉर्टिमर का विशेष योगदान है. उन्होंने ही ज़ीलैंडिया को आठवां महाद्वीप घोषित करने की मांग की थी.
चलिए दोस्तों इतना ही…