एक तरफ, भारत के उत्तरी छोर पर सीमा विवाद (Border Dispute) को हवा देकर चीन ने तनाव (Border Tension) की स्थिति बना रखी है, तो दूसरी तरफ, वो भारत के खिलाफ हर मुमकिन साज़िश रचने से बाज़ भी नहीं आ रहा है. हाल में आई indian express अखबार की एक रिपोर्ट में कहा गया कि चीन भारत की 10,000 से ज़्यादा अहम शख्सियतों जिनमें  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, डिफेंस प्रमुख जनरल बिपिन रावत समेत तमाम मुख्यमंत्रियों, मुख्य न्यायाधीश, सीएजी और फोर्सों के पूर्व व वर्तमान प्रमुखों की जासूसी (China Spying India) कर रहा है. यह जासूसी चीन के शेनज़ेन इलाके (Shenzen) में बेस्ड कंपनी ज़ेनहुआ (Zhenhua) डेटा इन्फॉर्मेशन टेक कंपनी के मारफत की जा रही है. इस कंपनी के ज़रिये चीनी प्रशासन ‘हाइब्रिड वॉरफेयर’ का इस्तेमाल करते हुए बड़े पैमाने पर डेटा का इस्तेमाल जासूसी के लिए कर रहा है.  आज हम समझेंगे की आखिर क्या है ये Hybrid Warfare

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दोस्तों जिस चीनी कंपनी के ज़रिये ये जासूसी की जा रही है, वो भारत में रियल टाइम सर्विलांस बड़े पैमाने पर करने के लिए जानी जाती है. अब आपको जानना चाहिए कि ‘हाइब्रिड वॉरफेयर’ का पूरा खेल क्या है और इससे भारत को कैसे और कितना नुकसान चीन पहुंचा सकता है. इसके लिए सबसे पहले समझते हैं कि क्या होता है हाइब्रिड वॉरफेयर?
दुश्मनों के साथ जंग करने का यह गैर पारंपरिक यानी नये ज़माने का तरीका है. इस तरह की रणनीति में डेटा का खेल होता है और उस डेटा के विश्लेषण के बाद दुश्मन के खिलाफ चालें चली जाती हैं. जैसे इस डेटा की मदद से आप दुश्मन के घर में गलत सूचनाएं फैलाकर फसाद या हिंसा करवा सकते हैं, वित्तीय मामलों में गड़बड़ि करवाई जा सकता है और देश के खिलाफ विद्रोह भड़काया जा सकता है.
एक किस्म के ‘प्रॉक्सी वॉर’ यानी छद्मयुद्ध के तौर से हाइब्रिड वॉरफेयर को समझा जा सकता है. इसमें दुश्मन के साथ आप सीधे सीधे कोई जंग नहीं करते हैं, लेकिन उसके घर में तनाव और घातक गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं. 1999 में भी चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने इस तरह की चालें चली थीं और तब इसे ‘अनलिमिटेड वॉरफेयर’ कहा गया था.

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क्यों हो रहा है इस रणनीति का इस्तेमाल?
दुश्मन देशों में असंतोष और हिंसा फैलाने वाले छद्मयुद्ध का यह तरीका वास्तव में चीन का आइडिया नहीं है इसका सबसे पहले इस्तेमाल रूस ने किया था. खबरों की मानें तो चीन के लिए इस हाइब्रिड वॉरफेयर के मास्टरमाइंड चीनी सेना के कर्नल कायो लिआंग और कर्नल वांग शिआंगसुई हैं. लेकिन, 2014-15 में रूस ने जिस तरह क्रीमिया में ​बगैर किसी खुले युद्ध के कामयाबी हासिल की, तबसे हर दूसरा देश इस तरह की रणनीति का इस्तेमाल करने में दिलचस्पी ले रहा है. तो आखिर ज़ेनहुआ डेटा तकनीक है क्या? चीन की नेवी और इंटेलिजेंस से सीधे संबंध रखने वाली यह चीनी कंपनी डेटा सूचनाएं जुटाने में महिर है. हर डिजिटल गतिविधि पर बारीक नज़र रखती है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी रास्ता बनाती है. नतीजा यह होता है कि इससे एक पूरी ‘सूचना लाइब्रेरी’ बन जाती है और फिर काम के डेटा को छांटकर उसका विश्लेषण होता है. अब यह सवाल खड़ा होता है कि किस तरह के डेटा को हम काम का डेटा मानेंगे?

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इसके लिए पते, वैवाहिक स्टेटस, खास लोगों के साथ तस्वीरें, राजनीतिक रिश्ते, परिवार और सोशल ​मीडिया पर सक्रियता जैसी सूचनाएं जासूसी और प्रॉक्सी वॉर के लिहाज़ से अहम समझी जाती हैं. ज़ेनहुआ कंपनी इस तरह की तमाम सूचनाओं का भंडार चीन की ‘थ्रेट इंटेलिजेंस सर्विस’ को सौंपती है. साथ ही, कंपनी उस डेटा को नष्ट नहीं करती, जो इंटेलिजेंस या चीनी सेना के काम का न हो, उसे भी अलग से भविष्य के लिए मेंटेन किया जाता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस डेटा का इस्तेमाल खतरनाक ढंग से हो सकता है.

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तो क्या ‘बॉयकॉट चीन’ के तहत पिछले दिनों सरकार द्वारा tiktok और pubg समेत कई मोबाइल एप्स ban किये उससे इस तरह के जासूसी के खतरे कम हो जाएंगे तो जवाब है नहीं?
विशेषज्ञ मानते हैं कि चीनी एप्स बंद करने से ज़ेनहुआ के मारफत चीन के जो नापाक इरादे हैं, उन पर कोई खास असर नहीं पड़ता. चीन की तकनीक यही है कि वो प्रोपैगेंडा, भ्रामक सूचनाओं यानी Info Air Pollution के ज़रिये दुश्मन की नाक में दम करे.

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